अंकुरित बीज जड़ तने सीधे सच्चे लगते है
बना लो राहे और पगडंडिया कितनी भी
घनी छाया के बिन सारे रास्ते कच्चे लगते है
करुणा और क्रंदन के गीत यहां आए है सिसकती हुई सांसे है रुदन करती मांए है दुल्हन की मेहंदी तक अभी तक सूख न पाई क्षत विक्षत लाशों में अपन...
जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
11/10/2020 रविवार को......
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