रविवार, 6 अप्रैल 2025

जपे राम हर पल

दीपक मन की पीर हरे
हर ले असत तिमिर
रोशन वह ईमान करे 
मजबूत करे जमीर

पग पग पर संघर्ष करे
सत्य करे न शोर 
वह मांगे कुछ और नहीं 
मांगे मन की भोर

मन के राजा राम रहे
वे दीन के है बल
यह मन साकेत धाम रहे
जपे राम हर पल







शुक्रवार, 4 अप्रैल 2025

छंदों पर प्रतिबंध है

खुली नहीं खिड़की
 दरवाजे बन्द है 
जीवन में बाधाएं 
किसको पसन्द है
कालिख पुते चेहरे
हुए अब गहरे है 
गद्य हुए मुखरित
छंदों पर प्रतिबंध है


मिली जूली भाषाएं 
आवाजे कांपती है
अनुभूति आदमी की
शब्दों को भांपती है
टूटी हुई आशाएं 
अभिलाषाएं मौन है 
जीवन की जटिलताएं
क्षमताएं नापती है

युग युग तक जीता है

अंधियारा रह रह कर आंसू को पीता है 
चलते ही रहना है कहती यह गीता है
कर्मों का यह वट है निश्छल है कर्मठ है
कर्मों का उजियारा युग युग तक जीता है

शनिवार, 29 मार्च 2025

ईश्वर वह ओंकार

जिसने तिरस्कार सहा 
किया है विष का पान 
जीवन के कई अर्थ बुने 
उसका  हो सम्मान

कुदरत में है भेद नहीं 
कुदरत में न छेद
कुदरत देती रोज दया
कुदरत करती खेद

जिसने सारा विश्व रचा 
जिसका न आकार
करता है जो ॐ ध्वनि
ईश्वर वह ओंकार 

शुक्रवार, 28 मार्च 2025

कहा गए है पद्य

छंदों से है हुआ विसर्जन
कविता सुंदरतम
सृजन से हर प्यास बुझी है 
पद्य है सर्वोत्तम

कविता अब उन्मुक्त हुई 
कवित हुआ गद्य
जोरो से खूब शोर हुआ 
कहा गए है पद्य

हर पल अब लालित्य कहेगा
पढ़ लो गद्य निबंध
जीवन में न क्षोभ रहेगा 
फैली ऐसी सुगंध

छंदों का न अंत मिला है
मिली न अब तक थाह
कविता देती कर्म प्रखर
जीवन का उत्साह

जहा भाव का भेद रहा
वहा नहीं कल्याण 
होता है अब बहुत कठिन 
छंदों का निर्माण

जिस पर सारा कोष लुटा है 
प्रज्ञा का वरदान
उसने ललित गद्य लिखे है
गद्य है पद्य समान 

कविता होती शुद्ध कुलीन 
कविता भाव प्रधान 
कविता दोहा गीत रही 
नवगीत का अवदान


कविता निकली शुद्ध हृदय 
हृदय का कमल
कविता केवल भाव नहीं 
कवि का है कौशल







गुरुवार, 27 मार्च 2025

आस्था की झांकी

खिला है सरोवर 
खिला है किनारा
किया है किसी ने 
कमल को ईशारा
बना है यहां पर 
जल का है दर्पण
क्षितिज से उदित हो 
सूरज है पधारा

थोड़ा सा सफर है 
जीवन का है बाकी
थकन नहीं मिटती 
पिला दे है साकी
कहा गए अपने 
अधूरे है सपने
देखे नहीं दिखती है
आस्था की झांकी


रहे हौसले तो बदलेगी ये दिन

सुखद और दुखद पल 
नदी ने जिया है
 रेतीली डगर पर 
सफर तय किया है
बिखरते हुए पल 
फिर भी न बिखरी
दिया जग को अमृत
 जहर खुद पिया है

नदी के किनारे 
ओझल हो मुमकिन
मिले न सहारे 
हो कठिनाई अनगिन
अंधेरे में दीपक 
बनकर जलेंगे 
रहे हौसले तो 
बदलेंगे ये दिन

बुधवार, 26 मार्च 2025

नदी नहीं हारी



नदी में सदी है नदी का किनारा
नदी ने है वन को शहर को संवारा 
छोटी हो या मोटी नदी देती रोटी
नदी होती किस्मत नदी है सहारा

नदी मन के अन्दर नदी है समंदर
नदी से है लड़ते कितने सिकन्दर 
नदी है कुआरी नदी नहीं हारी
भंवर है नदी में ,नदी में बवंडर

नदी होती माता नदी को बचाओ
चहकते है खगदल इन्हें मत सताओ
नदी बहती अविरल नदी होती निर्मल
नदी में न कचरा जहर को बहाओ 

नदी लेती करवट नदी चीरती पर्वत
नदी की हकीकत तो जाने पनघट 
यह कितना है प्यारा नदी का किनारा
नदी ने सम्हाले कितने ही मरघट

 वो खोई है  खोई नदी नहीं रोई
कल छल है करती नदी नहीं सोई
जहा भी हरा है नदी की धरा है
नदी ने है माटी भिगोई है बोई 

नदी में है औषध रोगों को भगाओ
नदी देती जीवन लोगो को जगाओ
नदी में मैला है नदी में खेला है 
तरसते होठों को नदी तक है लाओ








मंगलवार, 25 मार्च 2025

गहराई पाई

कही ऊंचे पर्वत तो कही गहरी खाई 
शिखर से वो झर के नदी बन के आई
नदी बन के तोड़े है अहम के वो पर्वत
अहम को मिटा कर है गहराई पाई


हर दिल को वो जीत गया 
अच्छा एक इन्सान 
जीवित स्वाभिमान रखा
जीवित रखा ईमान

रविवार, 23 मार्च 2025

अदभुत हुए प्रबंध

मंत्रों से कब मोक्ष मिला
शब्दों से कब छंद
संवेदना जब साथ रही
अदभुत हुए प्रबंध 

सुन लो समझो जान लो
शब्दों के भावार्थ
जिसने सीखा जिया वही
जीवन का यथार्थ

शनिवार, 22 मार्च 2025

सुधरी न तकदीर

तकदीरों से नहीं मिला 
कोई भी है लक्ष्य
पौरुष कर पुरुषार्थ करो 
जीवन का है सत्य

उनको कीर्ति नहीं मिली
जिनको उसकी चाह
कर्मठ करता कर्म रहा
होकर बेपरवाह 

फूलों से मकरंद मिला
भंवरे से उमंग
होली में है रास रहा
लगे रंग पे रंग

उतने पैदल दूर चले 
जितना बल था पास
उतना ही सामर्थ्य रहा 
उतना ही विश्वास

कितने सारे संत मिले
कितने मिले फकीर
जीवन जहां था वहीं रहा
सुधरी न तकदीर

खिले धूप में फूल रहे
मरुथल मिले बबूल
जहा सुविधा की छाँव रही
वहा दुविधा के शूल






मंगलवार, 18 मार्च 2025

तारो से कितने बिन्दु

चमके नभ पे अंधियारे में 
तारो से कितने बिन्दु 
नीला सा उन्मुक्त गगन है 
नीला नीला है सिन्धु 
पीड़ाएं तन मन की हरती
चिड़िया से चहकी यह धरती 
कुदरत रानी खिली हुई है
खिला हुआ नभ पर इंदु


नीले जल झांका करता है

नीले हम आकाश रहे है
नीला निर्मल जल
नीले फूलों से महका है
कलरव करता दल
नीली पहने प्यार चुनरिया 
जीवन का हर पल
नीले जल झांका करता है
 नित दिन अस्ताचल

नव अंकुरित बीजों से ही
 होता नव निर्माण
नवल चेतना ही उजियारे
को देती है प्राण
निर्माणों की पीठ है छीलती
जब पड़ता भार
कोमल कर से न चल पाया
शब्द भेदी वह बाण 

सृजन का आकाश दिया है
हर पल का आभास 
ईश से यह अनुभूति उपजी
जीवन है अब खास
जिसने दी यह मस्त पवन है 
बिखरा है उल्लास
बस उसकी ही खोज रही
बस उसकी ही प्यास

सोमवार, 10 मार्च 2025

भींगी हुई पलके

पल पल और प्रतिपल 
भावनाएं छलके
आंसू के भीतर 
भींगी हुई पलके
कभी दिल ये हारी 
कभी होती भारी
खुशी इसके भीतर 
कभी दुख झलके

कभी घुप्प अंधेरा 
खामोशियां है 
कभी चुप सवेरा 
थकी पेशियां है
कभी दिन अधूरे 
भरी दोपहर तक
कभी होली खेली
 मदहोशीया है

शुक्रवार, 7 मार्च 2025

दीपक से ले बल


औरों से वे पूछ रहे 
कहा है अपना गेह
भूले भोले भाव यहां 
भूल गए है स्नेह

हर पल ही तुम खुश रहो 
चाहे जो हो हाल
जीवन से सब कष्ट मिटे
सुलझे सभी सवाल

जीवन में जो दुख रहा 
उसका भी है हल 
दीपक सी तू ज्योत जला
दीपक से ले बल

अब तक दुर्दिन गए नहीं
होता  रहा बवाल
षड्यंत्रों की भेट चढ़े
अपने सभी सवाल




रखते अपने बैर

है अपना न कोई सगा
सब लेते मुंह फेर
अनजाने तो प्रीत रखे
रखते अपने बैर

कर आए वे अभी अभी 
तीरथ चारो धाम
घर में अब तक दिखे नहीं
उनको अपने राम

अंधियारे सी गुम रही
चाहत की एक शाख
अंधियारी एक रात रही 
अंधियारी एक आंख

अंधे को है दिखा नहीं 
कुदरत का यह रूप
जीवन केवल छांव नहीं
है सूरज की धूप


मोबाईल से बात करे
बिछड़ा टेलीफोन 
गहराई से सोच रहे 
यहां अपना है कौन

शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2025

हिलेंगे डूलेंगे

रहे है अंधेरे तो  
उजाले मिलेगे
खुली होगी बस्ती 
ताले खुलेगे
पथ पर कठिनतम 
हुई साधना है
अडिग है जो पत्थर 
हिलेंगे डूलेगे 

बुधवार, 12 फ़रवरी 2025

दुनिया थमी है

सरकता गगन है खिसकती जमीं है
कही आग दरिया कही कुछ नमी है
 कही नहीं दिखती  वह ईश्वरीय सत्ता 
पर उसी सहारे यह दुनिया थमी है


पानी

पागल और प्रेमी है घायल है पानी 
हुआ दिल जला तो बादल है पानी
नदी बन चला तो ताजा है पानी
बना जब समन्दर तो खारा है पानी

आंखों के अन्दर है भावों का पानी
मिले नहीं मिलता अभावों का पानी
कही एक बूंद भी मिलती नहीं है
मरुथल में मिलता है मुश्किल से पानी

मंगलवार, 11 फ़रवरी 2025

और व्यास देखो


दिखे नव उजाले
सहारे दिखे है 
बवंडर के अन्दर
कोलाहल दिखे है
है अक्षर से शब्दों 
 हुआ एक सफर है
दिखे दुख पराए 
कुछ हमारे लिखे है

पंछी और ख़गदल का 
उल्लास देखो 
चातक की तृप्ति 
 लगी प्यास देखो
हम कुदरत के भीतर
 रहे ही नहीं है 
इस धरती की परिधि 
और व्यास देखो

सोमवार, 10 फ़रवरी 2025

समन्दर वृहद है



खुली आंख से तू
सपने को बुन ले
सफल जिंदगी की 
कोई राह चुन ले
बस किस्मत के दम पर 
रहे मत भरोसे 
बहा श्रम सीकर तू
शिखर को ही चूम ले

रहा गम जीवन में 
हुई आंख नम है 
गैरो का ज्यादा 
मेरा दर्द कम है 
है खुद  का रखोगे 
जीवन सीधा सादा
पूरा होगा सपना 
बढ़ेंगे कदम है

है मिल गई जिसको 
जीवन की राह 
चाहे मिले सुख है 
न ग़म की परवाह 
रहे चाहे पथ पर 
कंकड़ और पत्थर
बिछे हुए कांटे 
न निकली है आह 

ग़मो का अंधेरा 
अंधेरे की हद है 
अंधेरों के आगे 
जीवन में सुखद है
जिसे मिले पथ पर 
पीड़ा और आंसू 
बहा सपनों का दरिया 
समन्दर वृहद है

पड़ी है दरारें



रही न मोहब्बत
  बनी है मीनारें 
खींची हुई लंबी
 ऊंची सी दीवारें
रिश्तों में ऐसा 
लगा हुआ पैसा
पैसों बिन यहां 
पड़ी हुई दरारें 



रविवार, 9 फ़रवरी 2025

योद्धा से दिखो


भरम जिंदगी में है जिसने है पाले 
लगे उसकी किस्मत पर बड़े बड़े ताले
कठिन वह पलो को अब कैसे सम्हाले
 मिले नहीं घर है , मिले न निवाले

पर्वत से विपदाए सहना है सीखो 
जड़ों से जुड़ो और जुड़ना है सीखो
 कितने हो दुर्दिन सूरज से उगो तुम
तमस से लड़ो तुम ,योद्धा से दिखो


रहे जिंदगी है  घनी छांव जैसी
सकून से भरी हो माहौल देशी 
  खबर हो खुशी की  सच्चे हो बच्चे 
नहीं करते हो उसकी ऐसी की तैसी

जीवन है नदी का


जीवन है नदी का 
बहना है आया
किनारों से उसने
साथ लम्बा निभाया
गति में रही वह
तो बोली है कल छल
गहरी हुई वह
तो उथला जल पाया

समंदर से जीवन 
जीना है सीखो
लहरों के संग संग 
रहना है सीखो 
कठिन कुछ पल
ज्वार भाटे के जैसे 
उन्हीं मुश्किलों में 
तुम इतिहास लिखो

कहा हम तलाशे


वहीं रही करवट 
वहीं रही सांसे
अपनो के सपनों को 
कहा हम तलाशे
है मंदिर के अब तक 
खुले नहीं पट है
तीर्थों पे प्रवचन 
कथा में तमाशे

शनिवार, 8 फ़रवरी 2025

इंसाफ होगा

इन्हीं गर्मियों में है 
नगर साफ होगा 
बिजली का बिल भी 
यहां हाफ होगा 
दिए है सभी को 
चुनावी है वादे
टूटे कुछ घरों से 
इंसाफ होगा



रुकी न जरा सी



किस्मत रही बस उसकी ही दासी 
चली जो निरंतर शिखर की है प्यासी
उगी जो पूरब से ढली शाम जैसी 
जो ठहरी नहीं है रुकी न जरा सी

मां ने दिए है बेटों को निवाले
मां की है गोदी जगत जो सम्हाले
विपदाये जितनी रही हो मगर वह
 बच्चों को पाले और विपदाये टाले 

जले हम हवन से


भरा है समंदर 
भरी हुईं आँखें 
टूटे हुए पर्वत 
कटी हुई शाखें 
किसी ने न समझी 
दुखी मन की पीड़ा
लगी हुई बेड़ी 
डली है सलाखें 

रहे हम धरा पे 
जुड़े हम गगन से
ऊंचे हो इरादे 
उड़े हम पवन से
चले जब भी पथ पर
 हो जाए लथपथ 
जले दीप शिखा से 
जले हम हवन से

रहा वही इन्सान 
जिसने विश्वास पाया
भागीरथ बना और 
गंगा है लाया
पत्थर को बिन कर 
बनाए शिवाले
पत्थर और कंकर में 
 ईश्वर जगाया



नवल गीत गया

नहीं जिसने जीवन में
 मधुमास पाया
गहन वेदना का नवल 
गीत गया
मिले जिसको रिश्ते 
कटीले नुकीले
हुए हाथ चोटिल
हुई जीर्ण काया

धरा है प्रफुल्लित
 है उन्मुक्त गगन 
 इधर उड़ते पंछी 
 उधर रहते मगन 
पवन बहती ताजी
 थोड़ा मुस्करा लो
सूरज दे रहा है 
जीवन को है अगन

धरा जिसने पाई 
उसका आकाश अपना 
मगर घर का मिलना 
केवल एक सपना
सपनों में बीता 
 बचपन और यौवन
मिली न विरासत 
अब तो जीवन में तपना



शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2025

समंदर

समंदर के अन्दर है
 कितने शिवाले
रहे रत्न सारे 
है उसने सम्हाले
समन्दर से अमृत
 समंदर बनो तुम
है अपने भीतर यह  
कई राज पाले 

समंदर में नदिया 
समंदर में सदिया
समंदर में पाई  है 
सुन्दर सी बगिया
कही इसके भीतर 
है हालात बदतर
है इसमें समाई
 जीवन की बतिया

दुखी है समंदर
 दुखी है किनारा
दुखी हुई धरती 
और जंगल सारा
दुखी हो के बादल 
बरसाता है जल 
दुखी ही बना है
 दुखी का सहारा

गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025

क्षितिज के किनारे

यही बहती नदिया
 किनारे बहे है 
ढहते हुए पर्वत
 ऊंचे किले ढहे है
भले छू लो ऊंचा
 आकाश कितना
क्षितिज किनारे 
रहे अनछुए है

समुंदर असीम है 
क्षितिज उसका कोना
रखो धैर्य अपना 
 होगा जीवन सलोना
रहे हर किनारे पे 
मगरमच्छ सारे
अगर कोई डराए 
मगर तुम डरो ना

है जितने भी तारे 
जमीन पे सारे
जमीन पे है नभ से
 किसी ने उतारे
 नदिया है झीलमिल
  झीलमिल किनारे
क्षितिज से है जल पर
 दिखे है नजारे

जरा सी गली है
 गली में है नारा
चुनावी क्षणों में 
चढ़ा हुआ पारा
जीता जैसे नेता
 हुआ ऐसे ओझल
मिला है वहीं तो 
नेता जो है हारा 

समंदर में नदिया
 नदिया में नाले
सरोवर धरोहर
 कुएं जल के प्याले
नहरों से कितनी 
सूख गई नदिया
शहरों की खुशियों से
 दुखी गांव वाले

खाली मन की बगिया 
खाली हुई थाली
चुभे जैसे नश्तर सी 
उनकी है गाली
पड़ी नहीं दृष्टि 
तरसते जीवन पर
नहीं अब फूलों को 
मिलता है माली



घनीभूत पीड़ा के दरिया बहे है

अंधेरों के भीतर 
उजाले रहे है
घनीभूत पीड़ा के
 दरिया बहे है
ये कैसा मुकद्दर 
जहां है समन्दर 
ख्यालों में खारे 
अनुभव रहे है

जरा पूर्व जन्मों का 
कही पाप धो लू 
लिखूं आत्म कथा 
और भेद खोलूं
कही यादें पनघट
कही यादें मरघट
जो थोड़ा सकून हो तो 
जीवन को है जी लू

ये सारी है दुनिया 
क्या तुम जीत लोगे
जितना भी दम होगा 
तुम उतने चलोगे
यदि है इरादे 
बड़े रहे मकसद
तो स्वर्णिम शिखर को
 तुम चूम लोगे

कही बंद पट है
 कही बंद तट है
कही गंगा जमुना
 किनारों पे वट है
कही कुंभ में जाने
 आने के लिए
 कही भीड़ उमड़ी 
कही सन्त मठ है

कही आते जाते हुए
रस्ता है देखे
वे घूर घूर कर
कही आंख सेके 
खड़े हुए मजनू
 चौराहों पर है
बने हुए रहवर
कही जाल फेंके

रविवार, 2 फ़रवरी 2025

सृजन खिल खिलाया

गीतों की धारा ने है
 सौंदर्य गाया 
गजल डूबी गम में 
छंद मुस्कराया
कभी व्यंग करते 
दोहे रहे है
साहित्यिक सुरों से 
सृजन खिलखिलाया

शनिवार, 1 फ़रवरी 2025

जीवन तेरा तब है

द्वेष दुर्भावना का 
किया जाए अन्त 
स्नेह सद्भावना को 
करे हम जीवन्त 
टूट गई आशाओं को 
एक विश्वास देकर
नई सम्भावना का 
ले आए वसन्त

खुली हुई खिड़की 
खुला हुआ नभ है
लिखी नव इबारत 
जीवन तेरा तब है 
कही दिखते पलकों पे
 करुणा के आंसू
ऊंची हुईं मीनारें 
नहीं दिखता रब है




 

रविवार, 19 जनवरी 2025

ब्रह्मा विष्णु महेश

जिसका कुछ मंतव्य रहा
उसका है गंतव्य
वो पाए अधिकार यहां 
जिसके कुछ कर्तव्य

प्राणों पर है बोझ रहा
जो कुछ कर तत्काल
जिसका होता कोई नहीं
उसके तो महाकाल

जीवन जिसका शेष नहीं 
उसका यह परिवेश
उसका होता प्रिय सखा
ब्रह्मा विष्णु महेश

गंगा यमुना यही बही
रहता यही प्रयाग
तीर्थों से उसे पुण्य मिला
हृदय जो निष्पाप 


शनिवार, 18 जनवरी 2025

उनके रहे विचार

पिता जी ने कहा नहीं 
हृदय का कोई दुख
वे तो सबको बाँट गए
जीवन का हर सुख

पिता जी चुपचाप रहे 
पिता जी है मौन 
जीते जी आदर्श रखे
जीवन का हर कोण

पिता जी कोई देह नहीं
है वैचारिक तार
दैहिक थे जो चले गए
उनके रहे विचार

पिता जी परमार्थ रखे
पिता है यथार्थ
वे तो मेरे प्रिय सखे 
मैं हूं केवल पार्थ


जपे राम हर पल

दीपक मन की पीर हरे हर ले असत तिमिर रोशन वह ईमान करे  मजबूत करे जमीर पग पग पर संघर्ष करे सत्य करे न शोर  वह मांगे कुछ और नहीं  मांगे मन की भो...